बिहार से लेकर केंद्र की राजनीति तक अपनी छाप छोड़ने वाले सुशील मोदी कौन थे?

13 मई रात 10 बजे के करीब कैंसर से जूझते हुए सुशील मोदी ने अंतिम सांस ले ली. जेपी के आन्दोलन से लालू नीतीश संग निकल कर राजनीति में आए थे सुशील मोदी. बिहार सहित भारतीय राजनीति में अच्छी खासी पकड़ रखने वाले सुशील मोदी कौन थे?

05 जनवरी 1952 को बिहार की राजधानी पटना में जन्म लिए सुशील मोदी, पटना साइंस कॉलेज से वनस्पति विज्ञान (Botany) में स्नातक कंप्लीट किए. उसके बाद उन्होंने परास्नातक और राजनीति दोनों में दाखिला लिया. 1971 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के 5 सदस्यीय कैबिनेट के सदस्य निर्वाचित हुए. 1973 से 1977 तक पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महामंत्री के पद पर निर्वाचित हुए, लालू प्रसाद यादव भी इसी छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में हिस्सेदार रहे थे और रविशंकर प्रसाद इसके संयुक्त सचिव थे. 1977 से 1986 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (ABVP) के प्रदेश मंत्री, प्रदेश संगठन मंत्री के पद पर कार्यरत थे. उत्तर प्रदेश-बिहार के क्षेत्रीय संगठन मंत्री भी रहें . विद्यार्थी परिषद् के 3 बार राष्ट्रीय महामंत्री एवं 1974 में जे.पी. आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई.

सुशील मोदी पहली बार राजनीति में एंट्री 1990 में बिहार विधानसभा के लिए पटना केंद्रीय विधानसभा (जो अब कुम्हार विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र के नाम से जाना जाता है) से विधायक चुने गए थे. आजतक के द्वारा प्रकाशित राजनितिक प्रोफाइल अनुसार इसके बाद 1995 और 2000 में भी विधायक चुने गए. वे लगातार तीन बार विधायक रहे. इसके बाद 1995 के साल में भारतीय जनता पार्टी के चीफ व्हिप रहे. चीफ व्हिप का मतलब यहां पार्टी द्वारा जारी किए व्हिप का सही से देखरेख करने वाले से है. सुशील मोदी 1996 से 2004 तक बिहार में विधानसभा के नेता विपक्ष भी रहे. सुशील कुमार मोदी का तीन दशक लंबा राजनीतिक करियर रहा है. इस दौरान वह विधायक, एमएलसी (MLC) , लोकसभा सांसद (MP)और राज्यसभा सांसद (MP) भी रहे. बिहार सरकार में वित्त मंत्री (Finance Minister) का महत्वपूर्ण पद भी संभाला. वह दो बार बिहार के डिप्टी सीएम रहे हैं. पहली बार वे 2005 से 2013 तक और दूसरी बार 2017 से 2020 तक उपमुख्यमंत्री का पद संभाला.

BBC से बातचीत में लेखक और पत्रकार नलिन वर्मा के मुताबिक़ सुशील मोदी के राजनीतिक अंत की बातें 2017 में ही शुरू हो गई थीं. वो इसपर कहते हैं,

"सुशील मोदी आडवाणी, वाजपेयी के दिनों के नेता हैं- चाहे वसुंधरा राजे हों, शिवराज सिंह चौहान हों या सुशील कुमार मोदी हों. वो गृह मंत्री अमित शाह से तो सीनियर हैं हीं और एक तरह से नरेंद्र मोदी के समकालीन हैं. 1990 के दशक में उनका कद भी बराबर था. जब भाजपा के अभी के नेतृत्व की नई राजनीति शुरू हुई तो उन्होंने अपने ब्रैंड के नेताओं की पीढ़ी बनानी शुरू कर दी जो उनके वफ़ादार हों."

1962 में भारत चीन युद्ध के समय वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्य के रूप में जुड़े. उसके बाद वे आजीवन सदस्य रहे.

सुशील मोदी का राजनितिक इतिहास का यह झलक मात्र है, ऐसे ही अन्य राजनितिक प्रोफाईल की जानकारी यदि चाहते हैं तो कॉमेंट कर बताएं. यहाँ तक पढ़ने के लिए शुक्रिया.

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Rohit Raj

सामाजिक सरोकार के लिए पत्रकार हूँ!