अंतिम श्वास गिनता बिहार

जब शर्म की बात गर्व की बात बन जाए, तब समझो कि जनतंत्र बढ़िया चल रहा है। - हरिशंकर परसाई

मौजूदा राजनीति में हरिशंकर परसाई का यह व्यंग्य काफी प्रासंगिक दिखता है. मानो हरिशंकर परसाई आज की ही कल्पना कर रहे थे.

बिहार और बिहार के लोग देश के केंद्र में हमेशा से रहे हैं, स्वतंत्रता संग्राम में वीर कुंवर सिंह की योगदान की बात हो या आजादी के वक्त बाबू जगजीवन राम की, या बात हो कांग्रेस को धूल चटा देने वाली जयप्रकाश के सोच की, या बात हो राष्ट्र की आवाज बनने वाले राष्ट्रकवि दिनकर की, पिछड़ी जाति के लिए लड़ने वाले कर्पूरी ठाकुर की, बिहार हमेशा से किसी न किसी रूप में देश के लिए खड़ा रहा है.

बीते दिनों कर्पूरी ठाकुर के भारत रत्न से सम्मानित होने की घोषणा के बाद बिहार की राजनीति की उठापटक इतनी तेज थी कि घोषणा के पांचवें दिन बिहार में सरकार बदल गयी.

इस लेख का उद्देश्य मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम से आपको सूचित करना ही नहीं, बल्कि आगे के लिए आपके दिमाग में कुछ बातों को डालना और उसपर गहराई से सोचने को मजबूर करना आवश्य है.

12 दिसंबर 1911 जब बिहार एक राज्य के रूप में जाना गया, 22 मार्च 1912 को पटना बिहार की राजधानी के रूप में स्वीकृत हुआ, उस वक्त बिहार के लोग जिस अस्मिता के लिए बिहार को अलग राज्य बनाने की बात किये थे, वो भूल चुके हैं. कुछ वर्षों के बाद उड़ीसा को बिहार से अलग कर एक नया राज्य बनाया गया, 2000 में झारखंड भी बिहार से अलग हो गया. बिहार भारत का 12वां राज्य था. उड़ीसा आज बिहार से आगे निकल चुका है. झारखंड भी बिहार को आंख दिखा रहा है. इकोनामिक टाइम्स में पढ़ा हुआ एक लेख संलग्न कर रहा हूं.

कैसे जाति ने बिहार की राजनीति में बाधा डाला है, जबकि उड़ीसा आगे बढ़ रहा है. - ET

आज बिहार की प्रासंगिकता देश में केवल राजनीति के ही दृष्टिकोण से है, बिहार जिसके पास संसाधनों की एक समय में कमी होती थी वह बिहार आज संसाधनों के होते हुए भी गरीब, लाचार, बीमार जैसे कई तरह के संज्ञाओ से जूझ रहा है.

बिहार के इस स्थिति को लेकर राजनेताओं से अधिक यहां के लोग यानि आप और हम जिम्मेदार हैं. बिहार हमेशा से राजनीति को जाति से जोड़कर देखता है. यह केवल बिहार तक सीमित नहीं है अन्य राज्यों में भी यह बात है पर वहां विकास के मुद्दों पर भी वोट होता है.

आज बिहार के जनमत का अपमान, बिहार की जनता स्वयं अपनी आंखों से देख रही है. बिहार का लोकतंत्र एक मिथ्या मात्र है, जो बिहार में मौजूद है पर दिखाई नहीं देता. पिछले 20 से 25 वर्षों से बिहार में केवल इतना अधिकार मिला है कि आप स्वतंत्रता से केवल श्वास ले सकते हैं, पर आज बिहार ही अंतिम श्वास ले रहा है.

पलायन बिहार की सबसे बड़ी समस्या है, बिहार के लोग बिहार में न रहकर बाहर जाकर बेहतर काम कर रहे हैं यानी लोगों में गुणवत्ता की कमी नहीं है. एक साक्षात्कार में एक राजनीतिक पार्टी के प्रवक्ता ने बहुत खूब कहा कि बड़े-बड़े कोचिंग सेंटर और बड़े-बड़े कॉल सेंटर बिहार में क्यों नहीं? खैर वह अलग बात है कि जिस पार्टी की वह प्रवक्ता थे उसे पार्टी का वजूद भी बिहार में नहीं है. कई सालों से बिहार संघर्ष कर रहा है.

एक बार स्वयं बिहार जाइए बिहार को देखिए, पटना जाएं पटना को देखिये. क्या आपको सच में लगता है कि यह आपकी राजधानी है?

जानकार बताते हैं बिहार की सबसे बड़ी समस्या सुखाड़ और बाढ़ है. मुझे लगता है बिहार की सबसे बड़ी समस्या बिहार के लोगों की मानसिकता है. बिहार में ऐसी कोई समस्या मौजूद नहीं है जिसका समाधान आज के समय में नहीं है. बिहार संभावनाओं का राज्य है जहां के लोग उसको एक नहीं अनेकों कार्य के लिए आगे बढ़ा सकते हैं.

उदाहरण के लिए बिहार महात्मा बुद्ध, महावीर, मां सीता की धरती है, यहां केवल पर्यटन का यदि विकास हो तो इस राज्य का भला हो जाए. कहते हैं बिहार से ही सबसे अधिक आईएएस और आईपीएस अफसर बनते हैं, यदि बिहार में ही यह सारे कोचिंग और संस्थाएं आ जाएं तो बिहार की स्थिति बेहतर होगी. बिहार में उत्पादित होने वाला मखाना देश के सर्वाधिक उपयोग में लाने वाला मखाना है, 12.5 करोड़ की जनसंख्या वाले राज्य में केवल तीन हवाई अड्डे और एकमात्र राज्य का सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन पटना रेलवे स्टेशन है. जबकि बिहार के ऐसे कई जिले हैं जो कि यूपी के तरह ही बिहार के विभिन्न केंद्रों में अपनी पहचान बना सकते हैं. आज बिहार केवल पटना तक सीमित हो रखा है क्योंकि वहां राजभवन, विधानसभा और उच्च न्यायालय है.

बिहार का भागलपुर, बिहार का पूर्णिया, बिहार का मधुबनी, बिहार का दरभंगा, बिहार का सहरसा, बिहार का बरौनी, बिहार का चंपारण, बिहार का गया, बिहार का नालंदा, सासाराम आदि बिहार के प्रमुख केंद्र हो सकते हैं. जहां केवल सांस्कृतिक धरोहर ही नहीं बल्कि विभिन्न प्रकार के उद्योग और कला से जुड़े क्षेत्रों को आगे बढ़ाया जा सकता है.

बिहार के नेता आज भी गरीब राज्य की मांग करते हैं या विशेष राज्य की दर्जे की मांग करते हैं. बिहारियों के लिए शर्म की बात है. बिहार के लोगों को बिहार के बारे में गंभीरता से विश्लेषण करने का समय आ गया है. नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब विकसित भारत में बिहार एक धब्बा बन कर उभरेगा.

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Rohit Raj

सामाजिक सरोकार के लिए पत्रकार हूँ!