प्रसिद्ध कहावत है 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है'। यदि मौजूदा परिस्थिति में चना कांग्रेस और भाड़ लोकसभा चुनाव को कहा जाए तो कोई गलती नहीं होगी।
जिस इंडिया एलाइंस का सपना कांग्रेस ने 18 जुलाई 2023 को कर्नाटक में देखा था, वह सपना चूर होता नजर आ रहा है। बंगाल में ममता बनर्जी की लड़ाई, बिहार में नीतीश की बेवफाई और उत्तर प्रदेश में अखिलेश के प्रभाव के कारण कांग्रेस के साथ इंडिया एलाइंस को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। उधर पंजाब में आम आदमी पार्टी ने अकेले सभी 13 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। इंडिया एलाइंस के लिए चुनौती अभी काम ही नहीं हुई थी उधर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ED ने गिरफ्तार कर लिया है तो दूसरी ओर बिहार में लालू यादव के परिवार से ED की पूछताछ जारी है। इंडिया गठबंधन लगातार परेशानियों का सामना कर रही है। ऐसे में यह सवाल जायज है कि यह गठबंधन क्या 2024 के चुनाव में विकल्प के तौर पर सामने आ पाएगा? क्या है इस गठबंधन का भविष्य?
इंडिया एलाइंस की प्रमुख पार्टी के रूप में कांग्रेस को जाना जाता है,लेकिन कांग्रेस आज के समय में अप्रासंगिक नजर आ रही है। 2023 के पांच राज्यों के चुनाव में मात्र एक राज्य को छोड़कर कांग्रेस सभी राज्यों में चुनाव को हार गयी। कांग्रेस ने पांच राज्यों के चुनाव में सभी जगह अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया था। जिसका खामियाजा चुनावी परिणाम के सहित इंडिया गठबंधन में भी देखने को मिला। पांच राज्यों के हार के बाद कांग्रेस की स्थिति को देखते हुए क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से इंकार कर दिया था, लेकिन मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी है जिसका पूरे देश में वर्चस्व है। जिस कारण सभी राजनीतिक दलों को नीतीश कुमार, जो कि इंडिया गठबंधन में सूत्रधार के रूप में जाने जाते थे, उनके द्वारा सभी दलों को साथ आने के लिए कोशिश किया गया था। जबकि क्षेत्रीय दलों का यह कहना था कि कांग्रेस के बिना एक साथ सभी क्षेत्रीय दलों का गठबंधन भाजपा का विकल्प बन सकती है। ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे इन सभी ने नीतीश कुमार से मिलकर क्षेत्रीय दलों के गठबंधन की बात की थी। नीतीश कुमार ने कांग्रेस को साथ रखने को कहा था परंतु वह इस बात से वाकिफ नहीं थे कि कांग्रेस इस तरह पेश आएगी।
वर्तमान समय में ही कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा अपने चरम पर है, जो बंगाल से निकलकर बिहार में जारी है। जिस कारण पार्टी की चुनाव को लेकर कोई राजनीतिक तैयारी नजर नहीं आ रही, पूरी पार्टी राहुल गांधी की न्याय यात्रा पर केंद्रित हो चुकी है। पार्टी का यह रवैया नीतीश कुमार को खासा पसंद नहीं आया। बिहार में सत्ता पल्टी पर नीतीश कुमार ने कहा कि उनकी आरजेडी से कोई तनातनी नहीं थी। नीतीश कुमार कांग्रेस के काम टालने के रवैये से परेशान थे। बंगाल में ममता बनर्जी ने ऐलान कर दिया है कि सभी सीटों पर टीएमसी अकेले चुनाव लड़ेगी, उनको कांग्रेस की आवश्यकता नहीं है। राजनीतिक गलियारों में कहा गया कि ममता बनर्जी के रूखेपन का कारण कांग्रेस पार्टी का लेफ्ट पार्टियों की ओर झुकाव रहा है। जो बात ममता बनर्जी को खासा पसंद नहीं आई थी। ममता बनर्जी की पार्टी की ओर से सांसद डेरेक ने अपने ट्वीट में कहा अधीर रंजन चौधरी ही कांग्रेस के साथ गठबंधन टूटने के कारण है।
वहीं उत्तर प्रदेश में अखिलेश ने कांग्रेस को 11 सीट देने की बात कही, तो कांग्रेस ने इसे सिरे से नकार दिया। उत्तर प्रदेश में 80 सीटों में से 11 सीट लेकर कांग्रेस अपने गढ़ को नहीं छोड़ सकती। उत्तर प्रदेश की कई प्राइम प्राइम सीटें कांग्रेस के लिए वरदान का कारण बनी है। रायबरेली से सोनिया गांधी स्वयं सांसद हैं जबकि राहुल गांधी अमेठी से भी चुनाव लड़ चुके हैं। उत्तर प्रदेश, जहां की जीत देश में लोकसभा चुनाव की जीत माना जाता है, वहां कांग्रेस पीछे नहीं हट सकती है।
मौजूदा समय में कांग्रेस के लिए 2024 का चुनाव काफी कठिन नजर आ रहा है, कांग्रेस अकेले इस भाड़ को फोड़ पाएगी या नहीं यह देखने की बात होगी। इंडिया गठबंधन, भारतीय लोकतंत्र के लिए भी अच्छा संकेत नहीं है। जिस तरह लोकतंत्र में एक सत्ताधीश की आवश्यकता होती है उसी तरह लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की भी आवश्यकता होती है। सभी दलों का एक साथ आकर चुनाव लड़ना, अब सपना सा महसूस होता है।
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